बुढ़ापा जीवन की एक अनिवार्य प्रक्रिया है। वृद्ध वैश्विक आबादी जनसांख्यिकीय संक्रमण का एक उप-उत्पाद है जिसमें मृत्यु दर और प्रजनन दर दोनों में गिरावट आती है। एक देश में बुजुर्गों की आबादी में अचानक उछाल समाज के सामने कई चुनौतियों का सामना करने के लिए बाध्य है। एजिंग कल्याण चिंता के दायरे से परे चला गया है, और इसे एक विकासात्मक चुनौती के रूप में देखा जाना चाहिए। भारत में 8.2% बुजुर्ग हैं (जो 60 वर्ष से अधिक आयु के पुरुष हैं) और भारत में 9.0% बुजुर्ग महिला आबादी (भारत की जनगणना, 2011)। कुल मिलाकर, 2001 की जनगणना की तुलना में बुजुर्गों का प्रतिशत 8.6% है, जो कि 7.4% था। इसलिए भारत एक जनसांख्यिकीय संक्रमण का सामना कर रहा है, जिसका प्रभाव व्यक्ति, परिवार, समुदाय, समाज और बड़े स्तर पर होगा।
राष्ट्रीय समाज रक्षा संस्थान पिछलें एक दशक से वृद्धों की देखभाल सहित समाज रक्षा के क्षेत्र में प्रशिक्षण प्रदान करने में सक्रिय रहा है। संस्थान का वृद्धों की देखभाल प्रभाग अनेक प्रोग्रामों /प्रमाण-पत्र पाठ्यक्रमों की एक श्रंखला चलाता है जिसका लक्ष्य हैः
• वृद्ध व्यक्तियों की देखभाल एवं कल्याण के लिए प्रोफेश्नलों का एक कैडर विकसित करना
• वृद्धो की देखभाल (जेरियेटिक केयर) से संबंधित विविध आयामों पर एक व्यापक एवं वैज्ञानिक ज्ञान का भंडार उपलब्ध कराना
• वृद्ध व्यक्तियों के कल्याण हेतु परिवार एवं समुदाय की सेटिंग में हस्तक्षेप पर आधारित कुशल मानव शक्ति प्रदान करना
• प्रोग्रम डेवलपमेंट एवं मैनेजमेंट पर जोर देते हुए वृद्धों की देखभाल के प्रबंधन हेतु तकनीको/हस्तक्षेपों पर छात्रों को जोड़ना
• वृद्ध व्यक्तियों की देखभाल के लिए सपोर्ट सिस्टम तथा नेटवकिंग की पहचान करना तथा विकसित करना
• स्थानीय तथा राष्ट्रीय दोनों स्तरों पर सरकारी/गैर सरकारी सेक्टरों की सेवाओं के अभिसरण को उपलब्ध कराना
• संस्थान स्वयं के साथ साथ क्षेत्रीय संसाधन प्रशिक्षण केन्द्र (आर.आर.टी.सी) तथा अन्य प्रतिष्ठित संगठनों के साथ मिलकर कोर्सेज संचालित करता है। वर्तमान में सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय विभाग द्वारा वृद्धों की देखभाल के क्षेत्र में नामित आठ आर.आर.टी.सी हैं। आठ आरआरटीसी की सूची के लिए यहां क्लिक करें।